14 सितम्बर 2019 को भारत में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी भारत की राज भाषा है और विश्व में तीसरी सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है। परन्तु बहुत ही कम लोगो को इस बारे में जानकारी है की आखिर क्यों इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। तो इस लेख को पढ़िए और जानिए की वो शक्स कौन थे जिनके प्रयासों से हिंदी भारत की राज भाषा बनी और क्यों 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।
हम बात कर रहे है हिंदी भाषा तथा साहित्य के एक पुरोधा, व्योहार राजेंद्र सिंह (सिंघा) की। यह वो महापुरुष है जिन्होंने अपना जीवन हिंदी साहित्य के उद्धार तथा कल्याण में व्यतीत किया। इतना ही नहीं इन्होंहे हिंदी को राजभाषा बनाने हेतु संविधान सभा में सर्वाधिक प्रयत्न किये थे। रोचक बात ये है की 14 सितम्बर के दिन ही व्योहार जी का जन्मदिवस भी है और इसी दिन संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव पारित किया था। इन 2 मुख्य कारणों से ही, सन्न 1953 से 14 सितम्बर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
व्योहार राजेंद्र सिंघा का जन्म 14 सितम्बर 1900 में जबलपुर, मध्य प्रदेश में हुआ था। वह हिंदी के बहुत बड़े विद्वान थे तथा उन्होंने अपने जीवन काल में हिंदी साहित्य के क्षेत्र में बोहोत कार्य किया। उनके अभिन्न प्रयासों के कारण ही उनके 50वे जन्मदिवस यानी 14 सितम्बर 1949 के दिन संविधान सभा ने संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के अंतर्गत हिंदी को भारतीय-संघ की आधिकारिक (राष्ट्रीय) राजभाषा तथा अधिकारिक (राष्ट्रीय) लिपि के तौर पर देवनागरी का चयन किया गया।
संविधान में लिखा गया “संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।”
व्यौहार ‘हिंदी साहित्य सम्मेलन’ के अध्यक्ष भी रहे तथा उन्होंने अमेरिका में आयोजित ‘विश्व सर्वधर्म सम्मेलन’ में भारत का प्रतिनिधित्व किया। व्योहार ने सर्वधर्म सभा में अपना भाषण दिया था जो की सम्पुर्नातह हिंदी भाषा में था। सम्मलेन में मौजूद लोग जो की विश्व के विभिन्न देशो से ए थे तथा विभिन्न भाषा का प्रतिनिधित्व करते थे, सभी ने व्योहार जी के भाषण की तारीफ़ तथा प्रोत्साहन किया था। इस किसम से उन्होंने हिंदी का परचम अंतर्राष्ट्रीय स्त्तर पर लहराया था।
व्योहार जी ने अपने जीवन में 100 से अधिक बौद्धिक ग्रंथों की रचना की। इनमे से कई सहितोयो और ग्रंथो का राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान भी हुआ और उनके लिखे साहित्यों को भारत तथा विदेशी महाविद्यालयो तथा विश्वविध्यालयो के पाठ्यक्रम में संस्तुत-समाविष्ट भी किया गया।
उन्होंने जीवन में गोस्वामी तुलसीदास की समन्वय साधना (1928), त्रिपुरी का इतिहास (1939), हिंदी गीता (1942), आलोचना के सिद्धांत (1956), हिंदी रामायण (1965), सावित्री (1972) जेसे आदि साहित्यिक ग्रंथो से विशेष प्रसिद्धि प्राप्त की । हिंदी के विद्वान ज्ञाता होने के साथ साथ संस्कृत, बांग्ला, मराठी, गुजराती, मलयालम, उर्दू, अंग्रेज़ी जेसी आदि भाषाओ पर भी सिंघ जी का अच्छा अधिकार था।
सिंघा जी को उनके जीवन काल में कई पुरस्कारों से नवाज़ा भी गया जिसमे साहित्य वाचस्पति, हिंदी भाषा भूषण, ‘श्रेष्ठ आचार्य जैसे आदि उपलब्धियां शामिल है। इसके आलावा भी कई अलंकरणों से व्यौहार जी को विभूषित किया गया। राजेन्द्र सिंह का निधन 2 मार्च 1988 को जबलपुर हुआ।
ताज़ा आंकड़ो के अनुसार हिंदी विश्व की तीसरी सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा है तथा भारत में सर्वाधिक हिंदी भाषी जनसँख्या है। महात्मा गाँधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा भी कहा है। हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने के प्रयास सन्न 1918 से जारी थी, जब हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने की बात कही गयी थी।
हिन्दी का भाषा कोष इतना समृद्ध होने के बावजूद भी, आज भारत में हिन्दी लिखते और बोलते समय वक्त व्यक्तीगण ज्यादातर अंग्रेजी भाषा के शब्दों का इस्तेमाल करते है। धीरे धीरे हिन्दी के कई शब्द चलन से ही हट गए क्योंकि की भारतीय लोगो को इन शब्दों के इस्तेमाल करने में असमर्थता महसूस होती है और वो इसलिए क्योंकि वे हिंदी भाषा से अक्सर रूबरू नहीं कराया जाता। इतना ही नहीं, बल्कि आजकल तो हिंदी अखबार तथा हिंदी न्यूज़ चैनल वाले भी हिंदी भाषा में अंग्रजी शब्दों का प्रयोजन करने लगे है।
देश में अगर हिंदी भाषा की शुद्धता को भ्रष्ट होने से बचाना है तो हिंदी दिवस की महत्ता तथा भाषा की महानता को समझना जरुरी है। इस तथ्य का ये अर्थ बिलकुल नहीं है है की अन्य भाषाओ में वो खूबसूरती, साहित्यिक शक्ति या फिर महत्ता नहीं है। अपितु, हर भाषा की अपना महत्ता है और इसी तरह हर भाषा का संरक्षण भी अपने आप में एक महत्वपूर्ण विषय है।
हिन्दी दिवस को उत्साह पूर्वक मानना तथा इसका महत्व आने वाली पीढ़ी को समझाना जरूरी है ताकि लोगों को यह याद रहे कि हिन्दी उनकी राजभाषा है और उसका सम्मान एवं प्रचार-प्रसार करना उनका गौरव पूर्ण कर्तव्य है।
हिन्दी दिवस मनाने के पीछे मंशा यही है कि लोगों को इस बार का एहसास हो की हिंदी भाषा का संरक्षण और इसे विलुप्त होने से बचाने के प्रथम मार्ग यही है की हम जितना महत्व विदेशी भाषा को दैनिक बोल चाल तथा लिखी पढाई में देते है, उतना ही हिंदी को भी देवे। विधय्लायो, महाविध्यलायो, विश्ववविद्यालयों की प्रमुख ज़िम्मेदारी है भाषा के संरक्षण की।
युवा पीढ़ी को वाद-विवाद, कविता सम्मलेन, नाटक प्रतियोगिता, जेसी आदि गतिविधियों में भाग लेने के लिया प्रोत्साहित करे। हमारे आस पास जो लोग इस संदर्भा में बात कर रहे है, मेहनत कर रहे है, उनका सम्मान करे, उन्हें सहयोग दे।
विश्व के सैंकड़ों विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। दक्षिण प्रशान्त महासागर के मलेशिया तथा इंडोनेशिया जेसे देशी में भी हिन्दी को आधाकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है। इसके आलावा पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, युगांडा, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद, मॉरिशस और साउथ अफ्रीका समेत कई देशों में हिन्दी भाषी जनसँख्या मौजूद है। हिंदी भाषा की महानता और महत्व को विश्व समझता है, परन्तु जहा इस भाषा का जन्म हुआ, उन्हें इसके सन्दर्भ में सबसे कम जानकारी है। इसी कारन से व्योहार राजेंद्र जी ने हिंदी को राजभाषा बनाने की बात का पुरजोर संवर्धन किया ताकि देश इस भाषा को ना भूले।